
आत्मा का परमात्मा से मिलन ही महारास है- कथा व्यास सुश्री भक्ति द्विवेदी

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कथा पीठ से 22 जनवरी को दीवाली से उत्सव मनाने का आह्वान
राकेश जायसवाल की रिपोर्ट
लैलूंगा-राम वनवास के 14 वर्ष बाद अयोद्धया लौटे थे और अब 500 वर्षो की प्रतीक्षा के बाद श्रीराम का आगमन 22 जनवरी 24 को होने जा रहा है जब श्रीराम जन्मभूमि पर नवनिर्मित भव्य मंदिर में श्रीराम विराजेंगे। हम सनातनियो के लिए उत्सव का दिन आने वाला है। सभी सनातनियो उस ऐतिहासिक व यादगार दिवस में दिए जलाकर दीवाली मनाएंगे।

कथा व्यास सुश्री भक्ति द्विवेदी ने संगीतमय श्रीमद भागवत कथा के सप्तदिवसीय आयोजन के व्यास पीठ से कही।लैलूंगा विकासखण्ड के ग्राम पंचायत कुपाकानी के ग्राम मांझीआमा में आयोजित श्रीमद भागवत कथा विगत दिवस कथा समापन पर हवन भंडारा के साथ हुई। आदिवासी बाहुल्य ग्राम मांझिआमा में समूचा ग्राम आयोजन व भक्ति रस में इस कदर डूबा की दोपहर 4 बजते ही कथा स्थल की और रुख होता था।

देर रात 9-10 बजे तक चलने वाली कथा में कथा श्रवण के साथ झांकियों व भजन में आन्नदमग्न होकर खूब झूमे।षष्ठम दिवस की कथा में कथा व्यास ने कहा कि चिंता की जगह भगवान का चिंतन करें, उन पर सारी चिंता छोड़ दें , उनके श्रीचरणों का चिंतन करें,चिंता से शरीर घटेगा लेकिन चिंतन से मन प्रसन्न रहेगा।किसी को अपना बनाना है, तो अपने स्वभाव से अपना बनाये प्रभाव से नही।

किसी मे देखे तो गुण देखे, दोष न देखें। कुब्जा का रूप नही देखा, बल्कि प्रेम व भाव देखा,तभी सुंदर स्वरूप प्रदान किया। कंस वध के पश्चात रुकमणी विवाह में झांकी स्वरूप ग्रामीण परिवेश में होने वाले विवाह के लिए बनाए गए मड़वा के नीचे ठाकुर जी व रुकमणि का विवाह सम्पन्न कराया।कथाप्रारम्भ 21 नवंबर को हुई। तथा कथा समापन दिवस 28 नवंबर को विसर्जन के दिन कथा व्यास ने हिन्दू धर्म, हिंदुत्व की रक्षार्थ सभी को तत्परता से आगे आने व सजग रहने के लिए सभी को संदेश दिया। हिन्दू धर्म सबसे सनातन है बाकी सभी धर्म कुछ सैकड़े व हजार वर्ष के हैं। जबकि हिन्दू धर्म सबसे सनातन सतयुग,द्वापर,त्रेता और वर्तमान कलयुग में भी है। आदिवासी भाइयो को हिन्दू नही होने की कुंठा को सिर्फ हिन्दू धर्म को तोड़ने की साजिस के लिए फैलाया जा रहा है। जबकि हम सभी राम के वंशज है हमारे वंशजो के नाम के शुरू व अंत मे राम व कृष्ण इनके प्रमाण है।हमारे पूर्वजो के हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए प्राण तक त्याग दिए लेकिन दूसरा धर्म नही अपनाया। प्रलोभन में न आएं व सबसे सनातन धर्म का पालन करते रहे। ऐसी कथा व अन्य धार्मिक आयोजन से ही आने वाली पीढ़ी संस्कारवान होती है और नशा मुक्ति, चोरी,पाप आदि बुराइयों से दूर रहने की प्रेरणा मिलती है। आयोजन समिति में शंकर साय सिदार, रामचरण सिदार,करम साय पैकरा,परीक्षित पैकरा,श्रवण पैकरा, सतनन्द सिदार,रुकसिंह सिदार,मनोज रावत,पवन पैकरा,चिंता सिदार,जय कुमार यादव, बाबूलाल भगत,शोभा भगत, मनोज पैकरा,शिवपाल सिदार,अमरसिंह सिदार,गजानंद सिदार,केशव चौहान,भुनिकेतन पैकरा,मुकेश यादव, मनीष पैकरा,सत्यनारायन पैकरा,हरीश सिदार,धनेश्वरी सिदार,नीलिमा सिदार,ससीमा सिदार,बलमती राउत,निर्मला यादव,रमिला सिदार,खेलकुँवर पैकरा का विशेष सहयोग रहा।




